गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) स्कैन करवाना माँ और बच्चे दोनों की सेहत की निगरानी के लिए बहुत ज़रूरी होता है। यह न केवल आपके बच्चे की स्थिति को समझने में मदद करता है, बल्कि यह यह भी सुनिश्चित करता है कि गर्भावस्था सामान्य रूप से आगे बढ़ रही है।
मातृका हेरिटेज हॉस्पिटल, दरभंगा में डॉ. कुमारी शिल्पा, जो एक अनुभवी स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ हैं, गर्भवती महिलाओं को यह सलाह देती हैं कि वे समय-समय पर अल्ट्रासाउंड स्कैन जरूर कराएँ ताकि किसी भी संभावित समस्या का समय रहते पता चल सके।
इस ब्लॉग में, हम गर्भावस्था के दौरान किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के अल्ट्रासाउंड स्कैन और उनके महत्व को समझेंगे।
📌 अल्ट्रासाउंड क्या है और यह क्यों जरूरी है?
अल्ट्रासाउंड एक सोनोग्राफी तकनीक है जो हाई-फ़्रीक्वेंसी साउंड वेव्स का उपयोग करके गर्भ में पल रहे बच्चे की छवि (इमेज) बनाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित और दर्दरहित होती है।
अल्ट्रासाउंड स्कैन के मुख्य उद्देश्य:
✔️ बच्चे की ग्रोथ और डेवलपमेंट की निगरानी करना।
✔️ किसी भी जन्मजात विकार (Congenital Anomalies) की पहचान करना।
✔️ एमनियोटिक फ्लूइड (Amniotic Fluid) के स्तर की जांच करना।
✔️ प्लेसेंटा (Placenta) की स्थिति को देखना।
✔️ गर्भावस्था के किसी भी कॉम्प्लिकेशन (जैसे प्लेसेंटा प्रिविया, ट्विन प्रेग्नेंसी आदि) का पता लगाना।
🔎 गर्भावस्था के दौरान होने वाले मुख्य अल्ट्रासाउंड स्कैन
1️⃣ पहला अल्ट्रासाउंड: डेटिंग और कंफर्मेशन स्कैन (6-9 सप्ताह)
यह अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था की पुष्टि करने के लिए किया जाता है। इसमें:
✅ भ्रूण (Fetus) की स्थिति की जांच की जाती है।
✅ गर्भ की सही अवधि (Gestational Age) का पता लगाया जाता है।
✅ भ्रूण की हार्टबीट (Heartbeat) सुनी जाती है।
📍 महत्व: यह स्कैन यह सुनिश्चित करता है कि गर्भ सही तरीके से विकसित हो रहा है और एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic Pregnancy) जैसी जटिलताओं को भी पहचानने में मदद करता है।
2️⃣ एनटी स्कैन (Nuchal Translucency Scan) – 11 से 14 सप्ताह
✅ यह स्कैन बच्चे में डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) या अन्य क्रोमोसोमल समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है।
✅ इसमें भ्रूण की गर्दन के पीछे मौजूद फ्लूइड की मात्रा मापी जाती है।
📍 महत्व: अगर कोई असामान्यता पाई जाती है, तो आगे और टेस्ट किए जा सकते हैं।
3️⃣ एनामॉली स्कैन (Anatomy Scan) – 18 से 22 सप्ताह
✅ यह एक डिटेल्ड अल्ट्रासाउंड होता है, जिसमें बच्चे के अंगों (जैसे हृदय, किडनी, फेफड़े, मस्तिष्क आदि) की जाँच की जाती है।
✅ यह देखा जाता है कि बच्चे के विकास में कोई समस्या तो नहीं है।
✅ प्लेसेंटा की पोजीशन और एमनियोटिक फ्लूइड के स्तर की जांच की जाती है।
📍 महत्व: अगर कोई समस्या पाई जाती है, तो डॉक्टर आगे की देखभाल और इलाज की योजना बना सकते हैं।
4️⃣ ग्रोथ स्कैन (Growth Scan) – 28 से 32 सप्ताह
✅ इसमें बच्चे की ग्रोथ और डेवलपमेंट को देखा जाता है।
✅ एमनियोटिक फ्लूइड और प्लेसेंटा की स्थिति की जाँच की जाती है।
✅ यह भी देखा जाता है कि बच्चे का वजन सामान्य है या नहीं।
📍 महत्व: यह स्कैन यह सुनिश्चित करता है कि बच्चा स्वस्थ है और सही तरीके से विकसित हो रहा है।
5️⃣ डॉप्लर स्कैन (Doppler Scan) – 32 से 36 सप्ताह
✅ यह स्कैन भ्रूण में ब्लड फ्लो की जाँच के लिए किया जाता है।
✅ यह उन महिलाओं के लिए आवश्यक होता है जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी की समस्या हो।
📍 महत्व: इससे यह पता चलता है कि बच्चे तक पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषण पहुँच रहा है या नहीं।
6️⃣ फाइनल स्कैन – 36 से 40 सप्ताह
✅ इसमें बच्चे की अंतिम स्थिति (Position) की जाँच की जाती है – जैसे कि बच्चा सिर के बल (Cephalic) है या उल्टा (Breech) है।
✅ इससे यह तय करने में मदद मिलती है कि नॉर्मल डिलीवरी संभव है या सिजेरियन की जरूरत होगी।
📍 महत्व: यह स्कैन डिलीवरी की योजना बनाने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि माँ और बच्चा सुरक्षित हैं।
💡 अल्ट्रासाउंड कराने से पहले ध्यान देने योग्य बातें
✔️ डॉक्टर द्वारा बताए गए समय पर ही अल्ट्रासाउंड कराएँ।
✔️ कुछ स्कैन के लिए पेट भरकर आना होता है, जबकि कुछ के लिए खाली पेट रहना जरूरी होता है – इस बारे में डॉक्टर से जरूर पूछें।
✔️ हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी में डॉक्टर के अनुसार अतिरिक्त स्कैन करवाना जरूरी हो सकता है।
📍 दरभंगा में प्रेग्नेंसी अल्ट्रासाउंड के लिए बेस्ट सेंटर – मातृका हेरिटेज हॉस्पिटल
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