प्रसवोत्तर अवसाद को समझें: लक्षण और उपचार
डॉ. कुमारी शिल्पा द्वारा सुझावित, मातृका हेरिटेज हॉस्पिटल, दरभंगा
माँ बनना जीवन का सबसे सुंदर अनुभव होता है, लेकिन हर महिला के लिए यह यात्रा समान नहीं होती। प्रसव के बाद शारीरिक, भावनात्मक और हार्मोनल बदलाव इतने तीव्र होते हैं कि कई महिलाओं में प्रसवोत्तर अवसाद (Postpartum Depression) विकसित हो जाता है। यह केवल “बेबी ब्लूज़” नहीं है, बल्कि एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है, जिसे समझना और समय पर इलाज करवाना बेहद ज़रूरी है।
👩🍼 प्रसवोत्तर अवसाद क्या है?
प्रसवोत्तर अवसाद वह अवस्था है जब प्रसव के बाद महिलाएं लंबे समय तक उदासी, तनाव, अनिच्छा या आत्मग्लानि महसूस करती हैं। आमतौर पर यह जन्म देने के कुछ हफ्तों में शुरू होता है और कभी-कभी महीनों तक रह सकता है। यह केवल भावनाओं का उतार-चढ़ाव नहीं बल्कि एक चिकित्सीय समस्या है जिसे पहचानने की आवश्यकता होती है।
🧠 प्रसवोत्तर अवसाद के सामान्य कारण
- हार्मोनल बदलाव
बच्चा जन्म देने के बाद एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर अचानक गिरते हैं, जिससे मूड और भावनाएँ अस्थिर हो जाती हैं। - नींद की कमी
नवजात की देखभाल में महिलाओं को पर्याप्त नींद नहीं मिल पाती, जिससे मानसिक थकान और चिड़चिड़ापन बढ़ता है। - शारीरिक परिवर्तन
शरीर में दर्द, थकान, वजन बढ़ना या प्रसव का तनाव मानसिक रूप से असर डालता है। - सामाजिक और पारिवारिक दबाव
परिवार या समाज की अपेक्षाएँ — “अच्छी माँ” बनने की चिंता — महिलाओं को भावनात्मक रूप से कमजोर कर सकती हैं। - पूर्व अवसाद का इतिहास
जिन महिलाओं को गर्भावस्था से पहले अवसाद या चिंता रही हो, उनमें यह स्थिति अधिक देखने को मिलती है।
🚨 प्रसवोत्तर अवसाद के लक्षण
- लगातार उदासी या निराशा
- बार-बार रोने की इच्छा
- बच्चे के प्रति लगाव की कमी या अत्यधिक चिंता
- अपने आप को असक्षम या असफल समझना
- नींद और भूख के पैटर्न में बदलाव
- घबराहट, अत्यधिक थकान या ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
- आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार
अगर ये लक्षण दो सप्ताह से ज़्यादा समय तक बने रहें, तो तुरंत विशेषज्ञ की सहायता आवश्यक होती है।
🔄 प्रसवोत्तर अवसाद का असर
यह स्थिति केवल माँ को ही नहीं प्रभावित करती — बल्कि बच्चे और पूरे परिवार पर असर डालती है।
- माँ के मूड और व्यवहार बदलने से बच्चे की भावनात्मक विकास पर असर पड़ सकता है।
- परिवार की संरचना में तनाव उत्पन्न हो जाता है।
- रिश्तों में दूरी और संवाद की कमी होती है।
इसलिए प्रसवोत्तर अवसाद को केवल भावनात्मक कमजोरी नहीं, बल्कि एक चिकित्सा स्थिति के रूप में देखा जाना चाहिए।
✅ प्रसवोत्तर अवसाद का उपचार (डॉ. कुमारी शिल्पा की सलाह)
- खुलकर बात करें
अपनी भावनाएं छुपाएँ नहीं। परिवार, मित्र या किसी भरोसेमंद व्यक्ति से अपनी बात साझा करें। मानसिक राहत पाने का पहला कदम यही है। - काउंसलिंग और थेरेपी लें
मनोचिकित्सक या काउंसलर से नियमित सत्र लें। Cognitive Behavioral Therapy (CBT) जैसी तकनीकें नकारात्मक विचारों को संतुलित करने में मदद करती हैं। - औषधीय उपचार
ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर एंटीडिप्रेसेंट या हार्मोन आधारित दवाएँ लिखते हैं। इन्हें केवल विशेषज्ञ की सलाह से ही लें। - पर्याप्त नींद और सहायक वातावरण
परिवार को चाहिए कि माँ को पर्याप्त आराम, सहयोग और भावनात्मक समर्थन दे। - स्वस्थ आहार और हल्की गतिविधियाँ
पौष्टिक खाना, पानी की पर्याप्त मात्रा और हल्का व्यायाम (जैसे योग या वॉक) मानसिक और शारीरिक पुनर्निर्माण में सहायक होते हैं।
📍 दरभंगा में प्रसवोत्तर अवसाद का समाधान कहाँ लें?
मातृका हेरिटेज हॉस्पिटल, दरभंगा में डॉ. कुमारी शिल्पा, अनुभवी स्त्री रोग विशेषज्ञ और महिला स्वास्थ्य परामर्शदाता, प्रसवोत्तर अवसाद से जूझ रहीं महिलाओं को विशेष सहायता देती हैं। यहाँ मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग, हार्मोन जांच, दवा प्रबंधन और पारिवारिक मार्गदर्शन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
📞 अपॉइंटमेंट के लिए संपर्क करें:
📱 +91 92791 37033
📍 तारा होटल वाली गली, अयाची नगर, बेंता, दरभंगा
💬 निष्कर्ष
प्रसवोत्तर अवसाद कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि मातृत्व के बाद शरीर और मन में होने वाले परिवर्तनों का परिणाम है। इसे पहचानना और उपचार लेना बिल्कुल सामान्य है। समय पर कदम उठाने से माँ का मानसिक स्वास्थ्य सुधरता है और वह अपने बच्चे के साथ इस नए जीवन को पूरी खुशियों से जी सकती हैं।
