आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में हम अक्सर अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। वहीं, हार्मोनल स्वास्थ्य को केवल शारीरिक समस्या मान लिया जाता है। जबकि सच्चाई यह है कि मानसिक स्वास्थ्य और हार्मोनल संतुलन एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। इनमें से किसी एक में गड़बड़ी होने पर दूसरा भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।
हार्मोन क्या होते हैं और इनका शरीर में क्या रोल है?
हार्मोन हमारे शरीर के रासायनिक संदेशवाहक होते हैं, जो अलग-अलग अंगों तक संकेत पहुँचाकर शरीर की कई ज़रूरी प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। जैसे—
मेटाबॉलिज़्म
नींद
ऊर्जा स्तर
प्रजनन क्षमता
मूड और भावनाएँ
जब हार्मोन संतुलन में रहते हैं, तो व्यक्ति खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ महसूस करता है। लेकिन जैसे ही इनका संतुलन बिगड़ता है, उसका असर सीधे हमारे व्यवहार, सोच और भावनाओं पर दिखाई देने लगता है।
मानसिक स्वास्थ्य का हार्मोन पर प्रभाव
हमारी मानसिक स्थिति सीधे तौर पर हार्मोनल सिस्टम को प्रभावित करती है। लंबे समय तक तनाव, चिंता या अवसाद में रहने से शरीर में कोर्टिसोल (Stress Hormone) का स्तर बढ़ जाता है। कोर्टिसोल का लगातार अधिक बना रहना कई समस्याओं को जन्म दे सकता है, जैसे—
नींद की कमी
वजन बढ़ना
थकान
चिड़चिड़ापन
ध्यान लगाने में परेशानी
यानी अगर मन लगातार तनाव में रहेगा, तो शरीर का हार्मोनल संतुलन भी बिगड़ना तय है।
हार्मोनल बदलाव और मानसिक स्वास्थ्य
जैसे मानसिक स्थिति हार्मोन को प्रभावित करती है, वैसे ही हार्मोनल बदलाव भी मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालते हैं। खासकर जीवन के कुछ चरणों में यह असर ज्यादा दिखाई देता है, जैसे—
किशोरावस्था
मासिक धर्म
गर्भावस्था
प्रसव के बाद का समय
मेनोपॉज
इन सभी अवस्थाओं में हार्मोन तेज़ी से बदलते हैं, जिसके कारण मूड स्विंग्स, बेचैनी, उदासी और कभी-कभी डिप्रेशन तक की समस्या हो सकती है।
मासिक धर्म और मूड स्विंग्स का संबंध
महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के उतार-चढ़ाव से प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (PMS) की समस्या होती है। इसके लक्षणों में शामिल हैं—
चिड़चिड़ापन
भावनात्मक अस्थिरता
चिंता
उदासी
थकान
इन हार्मोनल बदलावों का असर मस्तिष्क के सेरोटोनिन और डोपामिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर पर पड़ता है, जो मूड को नियंत्रित करते हैं।
महिलाओं में एंग्जायटी और डिप्रेशन का बढ़ता खतरा
शोध बताते हैं कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में एंग्जायटी डिसऑर्डर की संभावना लगभग दोगुनी होती है। इसका एक बड़ा कारण हार्मोनल उतार-चढ़ाव है।
इसके अलावा—
पोस्टपार्टम डिप्रेशन: डिलीवरी के बाद हार्मोन का अचानक गिरना
PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम): हार्मोनल असंतुलन के कारण चिंता और अवसाद
ये सभी स्थितियाँ मानसिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित कर सकती हैं।
पुरुषों में हार्मोन और मानसिक स्वास्थ्य
हार्मोनल असंतुलन केवल महिलाओं की समस्या नहीं है। पुरुषों में भी टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर मानसिक स्थिति पर सीधा असर डालता है।
टेस्टोस्टेरोन कम होने पर—
थकान
आत्मविश्वास की कमी
चिड़चिड़ापन
डिप्रेशन
और अधिक होने पर आक्रामकता और मूड डिसऑर्डर देखने को मिल सकते हैं।
लाइफस्टाइल का रोल: शरीर और मन दोनों पर असर
मानसिक और हार्मोनल स्वास्थ्य पर जीवनशैली का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। जैसे—
असंतुलित खानपान
नींद की कमी
शारीरिक गतिविधि की कमी
अत्यधिक स्क्रीन टाइम
ये सभी चीज़ें हार्मोनल असंतुलन और मानसिक समस्याओं को बढ़ावा देती हैं।
संतुलन बनाए रखने के लिए क्या करें?
नियमित व्यायाम करें
संतुलित और पौष्टिक आहार लें
नींद पूरी करें
तनाव प्रबंधन पर ध्यान दें
समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराएँ
किसी भी समस्या में विशेषज्ञ से सलाह लें
Matrika Heritage Hospital
Matrika Heritage Hospital महिलाओं और पुरुषों के मानसिक व हार्मोनल स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के लिए अनुभवी विशेषज्ञों और आधुनिक सुविधाओं के साथ समर्पित है। यदि आप हार्मोनल असंतुलन, मानसिक तनाव या इससे जुड़ी किसी भी समस्या से जूझ रहे हैं, तो समय रहते विशेषज्ञ सलाह लेना आपके बेहतर स्वास्थ्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।


