वर्जनाएँ तोड़ें: बिहार में महिलाओं के स्वास्थ्य पर खुली बातचीत की ज़रूरत
डॉ. कुमारी शिल्पा द्वारा सुझावित, मातृका हेरिटेज हॉस्पिटल, दरभंगा
बिहार जैसे समाज में, जहाँ परंपराएँ और संस्कार गहराई तक जड़े हुए हैं, महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी बातें आज भी अक्सर ‘शर्म’ या ‘लज्जा’ के दायरे में कैद हैं। मासिक धर्म, प्रजनन स्वास्थ्य, मानसिक समस्याएँ, स्त्री रोग — ये सारे विषय अब भी फुसफुसाने लायक समझे जाते हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि हम इन वर्जनाओं को तोड़ें और महिलाओं के स्वास्थ्य पर खुलकर बात करें।
💬 बात करने से बदलाव की शुरुआत होती है
जब महिलाएं अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर बात नहीं करतीं, तो वे अक्सर देर से उपचार कराती हैं या बिल्कुल ही डॉक्टर के पास नहीं जातीं। इससे साधारण समस्याएँ आगे चलकर गंभीर रूप ले लेती हैं — जैसे कि आयरन की कमी, अनियमित पीरियड्स, पीसीओडी (PCOD), गर्भाशय संक्रमण और मानसिक तनाव। बिहार की कई महिलाओं में ये आम हैं, लेकिन जागरूकता की कमी और सामाजिक हिचक इन्हें बढ़ा देती है।
🌸 महिलाओं के स्वास्थ्य पर वर्जनाएँ क्यों हैं?
- सामाजिक संकोच और मिथक
इतिहास और परंपराओं के कारण महिलाओं के शरीर और प्राकृतिक प्रक्रियाओं को रहस्य या पाप की तरह देखा गया है। - शिक्षा और जागरूकता की कमी
कई ग्रामीण इलाकों में लड़कियों को मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती। - परिवार और समाज का दबाव
“शालीन” या “संकोची” बने रहने की सीख से महिलाएं अपनी समस्याओं के बारे में खुलकर बात नहीं कर पातीं। - स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच
ग्रामीण क्षेत्रों में महिला डॉक्टरों की कमी और उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता भी एक बड़ी बाधा है।
🚨 बात न करने के परिणाम
जब कोई महिला अपने शरीर की बात नहीं कहती, तो वह बीमारी को चुपचाप सहती रहती है। इससे कई बार प्रजनन रोग, एनीमिया, मानसिक अवसाद और हार्मोन असंतुलन जैसी स्थितियाँ बढ़ती जाती हैं। साथ ही, यह आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है।
🔄 परिवर्तन की शुरुआत — खुली बातचीत से
- घर से शुरुआत करें
माताएँ और बेटियाँ खुले रूप से मासिक धर्म, पोषण, प्रजनन और मानसिक स्वास्थ्य पर बातचीत करें। संवाद की दीवार टूटेगी तभी परिवर्तन होगा। - स्कूलों और कॉलेजों में स्वास्थ्य शिक्षा
किशोरियों को सही जैविक और मनोवैज्ञानिक जानकारी देना आवश्यक है। मासिक धर्म या यौन शिक्षा कोई “गंदी बात” नहीं, बल्कि एक आवश्यक सीख है। - स्वास्थ्यकर्मियों और डॉक्टरों की भूमिका
डॉक्टरों को न केवल उपचारकर्ता बल्कि शिक्षकों की तरह काम करना चाहिए — जो महिलाओं को समझाए कि स्वास्थ्य पर बात करना स्वाभाविक है। - समुदायिक स्तर पर जागरूकता कैंप
बिहार के ग्रामीण इलाकों में कैंप, सेमिनार और निःशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर आयोजित कर संवाद की संस्कृति विकसित की जा सकती है।
✅ डॉ. कुमारी शिल्पा की सलाह: खुली चर्चा अपनाएँ
- मासिक धर्म, गर्भनिरोधक, और हार्मोनल बदलाव पर सवाल पूछने से झिझकें नहीं।
- परिवार में पुरुषों को भी इन विषयों पर जागरूक बनाएं।
- पीरियड्स या प्रजनन स्वास्थ्य के लिए स्थानीय घरेलू उपायों या अप्रमाणित सलाह की बजाय डॉक्टर से परामर्श लें।
- मानसिक स्वास्थ्य को भी समान महत्व दें — उदासी, चिंता या गुस्से को “कमज़ोरी” न समझें।
📍 बिहार में महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सहायता कहाँ मिलेगी?
मातृका हेरिटेज हॉस्पिटल, दरभंगा में डॉ. कुमारी शिल्पा महिलाओं को सुरक्षित, संवेदनशील और गोपनीय वातावरण में स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करती हैं। यहाँ पर मासिक धर्म, प्रजनन, मानसिक स्वास्थ्य और पोषण पर व्यक्तिगत काउंसलिंग, टेस्ट और उपचार उपलब्ध हैं।
📞 अपॉइंटमेंट के लिए संपर्क करें:
📱 +91 92791 37033
📍 तारा होटल वाली गली, अयाची नगर, बेंता, दरभंगा
💬 निष्कर्ष
महिलाओं का स्वास्थ्य केवल उनकी शारीरिक भलाई से नहीं जुड़ा — यह पूरे समाज की भलाई से जुड़ा है। अगर हम चुप्पी को तोड़ें, शर्म की जगह संवाद को दें, तो बिहार की हर महिला अधिक स्वस्थ, आत्मविश्वासी और सशक्त बनेगी।
अब समय है कि “वर्जनाओं” की दीवारें गिरें और “बातचीत” की खिड़कियाँ खुलें — क्योंकि जब महिलाएँ खुलकर बोलती हैं, तभी समाज सच में स्वस्थ होता है।


